आपने आज तक बहुत से लेख और ब्लॉग पोस्ट पढ़े होंगे कि गरीब से अमीर कैसै बनें? लेकिन कभी आपने ये नहीं पढ़ा होगा कि मध्यम वर्ग से या धनी वर्ग से गरीब कैसे बनें। किन कारणों से आप गरीब बन सकते हैं। जी हां आपने सही पढ़ा कि
भारत में गरीब कैसे बनें इस के उपर कभी कोई चर्चा नहीं होती है।
लेकिन हम बहुत से ऐसे कारणों को जान गये हैं जिसकी वजह से गरीब लोग अत्यधिक गरीबी में चले जाते हैं, कम आय वर्ग और मध्यम वर्ग गरीबी में चला जाता है। आपने देखा होगा कि कई मध्यम वर्ग के परिवारों ने तो पूरे परिवार सहित आत्महत्या जैसे कदम भी उठा लिये।
इसलिये जरूरी है कि हम सब उन कारणों को जाने जिससे भारत में गरीबी फैलती है, तभी हम उस के प्रति सचेत रह कर गरीबी के जाल से बाहर निकलने की कोशिश कर पायेंगे। इनमें से कई कारण गरीबों के खुद के हैं, कुछ अल्प आय और मध्यम वर्ग से संबंधित हैं।
यूं कहने को तो भारत में गरीबी को कम करने के लिये केन्द्रीय और राज्य सरकारों द्वारा ढेरों योजनायें चलाई जाती हैं जिससे गरीबी आंकड़ों में कम होती जाती है पर वास्तविक रूप से कम नहीं होती। इन योजनाओं द्वारा देश का बहुत पैसा खर्च होता है (कुछ भाग भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है) और गरीबी के रेखा के नीचे के निर्धन उपर उठकर वास्तविक गरीबी में आ जाते हैं।
गरीबी क्या है?
एक बात ये है कि हम यहां पर गरीबी की सरकारी परिभाषा जिसमें शहरों में 33 रुपये और गांवों में 27 रुपये से कम कमाने वाले को गरीब माना जाता है, को न मान कर वास्तविक रूप से गरीबी को देखेंगे क्योंकि भारत में दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाली वस्तुओं की जो कीमत है और इसके लिये जिस हिसाब से लोगों का खर्चा है और जिस प्रकार से लोगों की क्रय क्षमता है उसके हिसाब से तो कम से कम सरकारी तंत्र के चतुर्थ और तृतीय वर्ग के लोग भी गरीबी ही कहलायेंगे।
परिभाषा के अनुसारी तो गरीबी उस समस्या को कहते हैं जिसमें व्यक्ति अपने और अपने परिवार के जीवन की मूलभूत आवश्यकताएँ जैसे कि रोटी, कपड़ा और मकान को पूरा करने में असमर्थ होता है । अधिक दृष्टिकोण से उस व्यक्ति को गरीब या गरीबी रेखा के नीचे माना जाता है जिसमें आय का स्तर कम होने पर व्यक्ति अपनी भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ होता है ।
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भारत में गरीब कैसे बनते हैं? गरीबी के कारण
1. उचित शिक्षा का अभाव
गरीब लोगों के लिये शिक्षा की व्यवस्था करने के लिये सरकारें अपने विभिन्न प्रकार के विद्यालय चलाती हैं। सभी लोग शिक्षा की इस सरकारी व्यवस्था के बारे में जानते हैं। इसी कारण से उचित प्रकार की शिक्षा गरीबों को मिल नहीं पाती है।
शिक्षा के अभाव में गरीब लोग जिन्दगी में मिलने वाले मौके नही भुना पाते हैं और न ही कोई नया मौका खुद बना पाते हैं। उनको ये पता ही नहीं चलता कि किस तरह से एक या दो पीढ़ी में गरीब अपनी गरीबी के कुचक्र को तोड़ सकते हैं।
कुछ गरीब शिक्षा को महत्वहीन मानते हैं। वे अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बजाय उनसे काम करवा कर परिवार की आमदनी बढ़ाना पसंद करते हैं।
ये बात कुछ हद तक कम गरीब और निम्म मध्यम वर्ग के लोगों के लिये भी लागू होती है। ये लोग प्रारम्भिक और आगे की शिक्षा तो पा जाते हैं लेकिन विशेषज्ञता वाली शिक्षा जो कि या तो सरकारी सरकारी क्षेत्र में सीमित है या फिर बहुत ही मंहगी है। कई प्रकार के आगे बढ़ने के अवसर उचित शिक्षा के अभाव में लोगों के हाथ से निकल जाते हैं।
2. स्वास्थ्य में बहुत खर्च होना
अधिकांश गरीबों का रहन सहन ऐसी जगहों पर होता है जो कि बहुत स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत अच्छी नहीं होती हैं। ऐसे में आये दिन कुछ न कुछ बामारी लगी रहती है जिससे रोजाना की आय तो जाती ही जाती है बल्कि आय का बहुत बड़ा हिस्सा मेडिकल के खर्चे में चला जाता है।
अल्प आय वर्ग और मध्यम वर्ग भी स्वास्थ्य में बहुत होने वाले खर्चे की वजह से अस्पतालों के बिल चुकाते चुकाते कब गरीबी में बहुंच जाते हैं पता ही नहीं चलता है। इन वर्ग के लोगों को तो खास तौर पर अपने अच्छे स्वास्थ्य के लिये सतर्क रहना चाहिये।
हमने अपने जीवन में बहुत सारे मध्यम वर्ग के लोगों के स्वास्थ्य समस्याओं में बहुत खर्चा होने का कारण लोन लेते हुये देखा है। जिससे फिर से रहन सहन का स्तर नीचे आ जाता है।
नये गरीब बनने में उचित दर पर अच्छी स्वास्थ्य सेवायें न मिलना और अपने स्वास्थ्य को लेकर लोगों की लपरवाही बहुत बड़ा कारण है।
3. शराब की लत
मैंने अपने जीवन में अब तक ऐसे बहुत सारे लोगों को देख लिया है जो कि शराब की लत के कारण अपना पैसा और स्वास्थ्य गंवा रहे हैं। बहुत सारे लोगों को
शराब के कारण अल्प आयु में ही मौत के आगोश में जाते देखा है।
चाहे शराब पीकर कोई अपराध करना हो, कहीं कोई दुर्घटना में चोटिल होना हो या मौत हो जानी हो या फिर स्वयं शराब के कारण खराब स्वास्थ्य के कारण कोई ढंग का काम न करना या फिर लिवर की खराबी के कारण मौत होना हो, हर हाल में लोगों का बहुत सारा पैसा खर्च होता है।
जिस पैसे ले लोग अपना जीवन स्तर सुधार सकते हैं, उस पैसे को शराब के उपर खर्च करके लोग वापस वहीं वापस आ जाते हैं जहां से गरीबी के खिलाफ संघर्ष आरम्भ होता है। शराब को लेकर समाज अब आमतौर पर शराब के ही साथ है। कोई भी शराब के दुष्परिणामों पर बात नहीं करना चाहता है।
शराब अब लोगों के जीवन का हिस्सा बनकर उनकी आय और आयु दोनो को चाट रही है। अब तो
महिलायें भी शराब पीने में पूरूषों का पूरी तरह साथ दे रही हैं।
4. सरकारी योजनायें भी लोगों को गरीब बना रही हैं
भारत की केन्द्रीय सरकार हो या फिर राज्यों की सरकारें, सब गरीबों के लिये दम भरते हैं और गरीबों के लिये कई कल्याणकारी योजनाओं को चलाते रहते हैं। इन सब योजनाओं से थोड़ा बहुत लाभ गरीबों का होता है और बहुत सारा फायदा बीच के दलालों, सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों और नेताओं को होता है।
इन योजनाओ को चलाने के लिये अनेक कंपनियां, स्वयं सेवी संस्थायें और कर्मचारी लगते हैं और वे ही इसके वास्तविक लाभार्थी बनते हैं।
दूसरी तरफ गरीब लोगों के लिये जो ये कल्याणकारी योजनायें चलती हैं इनमें गरीबों को गरीब ही रहने का पुरस्कार मिलता है। अधिकांश सरकारी गरीबी को योजनाओं मे गरीब के किसी न किसी पैमाने के अन्दर होने के कारण लाभार्थियों को तरह तरह की राशन, घर, पढ़ाई इत्यादि की सुविधायें मिलती हैं।
अगर कोई गरीब अपनी मेहनत से गरीबी के पैमाने से ऊपर आ गया तो उसको मिलने वाली सारी सुविधायें बंद हो जाती हैं। गरीबी के पैमाने से उपर आने पर भी गरीब आदमी कोई अमीर व्यक्ति नहीं बन जाता है। लेकिन सरकार उसकी फ्री मिलने वाली सुविधायें बन्द कर देती है। इसलिये भी गरीब अपने आप को गरीब बनाये रखने में ठीक महसूस करता है।
दूसरी बात ये कि जब सब कुछ सरकार दे ही रही है तो गरीब लोग सोचते हैं फिर गरीबी से उपर उठ कर मेहनत कर के कमाने की व्यवस्था करने से क्या फायदा?
क्या आपने कोई ऐसी सरकारी योजना देखी है जो लोगों से कहती हो कि यदि आप अपनी मेहनत और सरकारी सहायता से अपनी गरीबी से निकल कर कम से कम अल्प आय वर्ग में आ जाओगे तो आपको कई प्रकार की विशेष सुविधायें मिलेंगी? नहीं न।
5. गलत सरकारी नीतियां
भारत की धरती जिस पर भगवान ने इतने प्राकृतिक संसाधन जिसमें लंबे मैदानी क्षेत्र, नदियां, जिनमें एक अच्छी जलवायु और ढेर सारे प्राकृतिक संसाधन शामिल हैं, दिये हैं कि अगर ढंग से सरकारी नीतियां रहें तो ये देश वापस प्राचीन काल की तरह सोने की चिड़िया बन सकता है।
फिर भी सवाल यह है कि आज़ादी के 74 साल बाद भी भारत एक बेहद गरीब देश क्यों है? दरअसल भारत में मेहनत करके गरीबी से ऊपर आने को कभी प्रोत्साहित नहीं किया गया। लोगों को उत्पादकता के कामों में लगने के बजाय केवल नौकरी करने को ही रोजगार का माध्यम बना दिया।
सरकारों ने सोशलिस्ट समाजवादी नीतियां बना कर ऐसे श्रम कानून और नीतियां बनाईं कि लोगों के लिये मेहनत करके अपना काम करना मुश्किल हो गया।
इस दौरान अच्छे पढ़े लिखे लोग उचित अवसरों की तलाश में भारत से बाहर जाते रहे। मानव संपदा जो कि भारत को आगे लो जाती वो दूसरे देशों के विकास में काम आती रही।
भारत में अधिकांश लोगों खास कर व्यवसायीओं पर इतने प्रकार के टैक्स (कर) लगा दिये गये कि लोग कर बचाने के लिये बड़े पैमाने पर काला धन बनाने लगे। और इस प्रकार जो धन भारत में लगता और देश को आगे ले जाता वो विदेशी बैंकों में जमा होने लगा।
इस प्रकार भारत की सरकारी नीतियों के कारण भी लोग गरीब होते जाते हैं। हालांकि अब सरकारें नींद से जागी हैं और अपनी नीतियों में परिवर्तन कर रही हैं।
6. सामाजिक परिस्थितियां
भारत में गरीबी का बहुत बड़ा कारण सामजिक परिस्थितियां और सामाजिक रूप से विभेद भी है। सामाजिक विभेद को तो राजनैतिक रूप से भारत में विभिन्न स्वरूपों में के आरक्षण और गरीबी हटाओ योजनाओं के द्वारा दूर किया गया है। लेकिन सामाजिक स्थितियों पर अभी भी कुछ नहीं किया गया है।
भारतीय अर्थव्यवस्था का मूल सामाजिक आधार आज तक भी पुरानी सामाजिक संस्थाएं तथा रूढ़ियां हैं। यह वर्तमान समय के अनुकूल नहीं है। ये संस्थाएं हैं - जातिप्रथा, संयुक्त परिवार प्रथा और उत्तराधिकार के नियम आदि। ये सभी भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी से होने वाले परिवर्तनों में बाधा उपस्थित करते हैं।
चाहे तड़क भड़क भरी शादी में होने वाला खर्चा हो, शादी में दिये जाना वाला दहेज हो, मृत्यु भोज हो या फिर आये दिन आने वाले तीज-त्यौहार हों, सब पर समाज में अपना मुंह दिखाने और अपनी हैसियत बताने के नाम पर बहुत खर्चा होता है।
बहुत से लोगों को तो हमने इन सब खर्चों के लिये लोन लेते हुये देखा है। गरीबी का कुचक्र इसी प्रकार के खर्चों के कारण बना रहता है।
इन खर्चों में मध्यम आय वर्ग भी शामिल है। मध्यम आय वर्ग में तो आजकल अपनी सामाजिक हैसियत में दिखावा करने के लिये अपनी क्षमता से ज्यादा खर्च करके बच्चों को मंहगी शिक्षा, कार खरीदना, विदेश यात्रा करना इत्यादि भी शामिल हो गये हैं।
उधार चुकाते चकाते अपनी मेहनत की कमाई लोग ऐसे ही कामों मे लगा देते हैं और गरीबी में आ जाते हैं।
7. बढ़ती मंहगाई
बुनियादी वस्तुओं की लगातार बढ़ती कीमतें भी गरीबी का एक प्रमुख कारण हैं। गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले व्यक्ति के लिए जीवित रहना ही एक चुनौती है। भारत में गरीबी का एक अन्य कारण जाति व्यवस्था और आय के संसाधनों का असमान वितरण भी है।
इसके अलावा पूरे दिन मेहनत करने वाले अकुशल कारीगरों की आय भी बहुत कम है। असंगठित क्षेत्र की एक सबसे बड़ी समस्या है कि मालिकों को उनके मजदूरों की कम आय और खराब जीवन शैली की कोई परवाह नहीं है। उनकी चिंता सिर्फ लागत में कटौती और अधिक से अधिक लाभ कमाना है।
उपलब्ध नौकरियों की संख्या के मुकाबले नौकरी की तलाश करने वालों की संख्या अधिक होने के कारण अकुशल कारीगरों को कम पैसों में काम करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है।
सरकार को इन अकुशल कारीगरों के लिए न्यूनतम मजदूरी के मानक बनाने चाहिये। इसके साथ ही सरकार को यह भी निश्चित करना चाहिये कि इनका पालन ठीक तरह से हो।
8. भारत की बढ़ती जनसंख्या
भारत में गरीबी का एक बड़ा कारण बढ़ती जनसंख्या है। इससे निरक्षरता, खराब स्वास्थ्य सुविधाएं और वित्तीय संसाधानों की कमी भी बढ़ती जाती है। इसके अलावा उच्च जनसंख्या दर से प्रति व्यक्ति आय भी प्रभावित होती है और प्रति व्यक्ति आय घटती है।
एक अनुमान के अनुसार के भारत भारत पूरी दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने की ओर अग्रसर है। भारत की आबादी जिस रफ्तार से बढ़ रही है उस रफ्तार से भारत की अर्थव्यवस्था नहीं बढ़ रही है। अब तो भारत की सड़कों पर बढ़ती हुई जनसंख्या महसूस होने लगी है।
भारत में जनसंख्या इस गति से बढ़ रही है कि कुल उत्पादन बढ़ने पर प्रत्येक व्यक्ति के हिस्से में अधिक धन नहीं हो पाता, जिससे जीवन-स्तर ऊंचा नहीं हो पाता। इसी वजह से बेराजगारी बढ़ती है।
बढ़ती जनसंख्या पर रोक लगाने के लिये कठोर कदम उठाने का समय आ गया है ताकि गरीबी को भी काबू में किया जा सके
9. प्राकृतिक आपदायें
भारत में गरीबी के अनेक कारणों में से एक भारत के विभिन्न भागों में किसी न किसी समय आने वाली प्राकृतिक आपदायें भी कहीं न कहीं दोषी हैं। कहीं अत्यधिक ठंड का मौसम रहता और वर्ष के अधिकांश समय बर्फ रहती है, कहीं ज्यादा बारिश से बाढ़ रहती है, कहीं सूखा रहता, कहीं जमीन रेगिस्तानी है, कहीं जंगल हैं। कभी कभी भूकम्प भी आ जाता है।
इन सब प्राकृतिक कारणों से बड़ी जनसंख्या प्रभावित होती है। जब काम करने का मौका प्राकृतिक आपदाओं की वजह से चला जाता है तो लोगों की आय भी गिर जाती हैं अतः गरीबी बनी रहती है।
10. प्रेरणा की कमी - गरीबी का महिमा मंडन
जैसा कि हमने ऊपर क्रम संख्या 4 में भी बताया था कि गरीबी उन्मूलन के फार्मूले में काम करने के प्रोत्साहन के अभाव की भी है। गरीब को सहज ही भोजन मिल जाए, तो श्रम करने की रुचि नहीं रह जाती है। लोगों को सरकारी योजनाओं की वजह से काफी वस्तुयें निशुल्क मिल रही हैं जिससे उनकी श्रम करने की चाहत समाप्त हो गई है।
यदि समाज का एक बड़ा वर्ग इस प्रकार निष्क्रिय हो जाएगा, तो फिर उनका उत्थान तो नहीं हो पायेगा।
इन कारणों से बढ़ती असमानता के साथ गरीबी उन्मूलन हो जाए, तो भी वह सफल नहीं होगा। हमारे सामने विकट समस्या उपलब्ध है, विकास की प्रक्रिया में असमानता में वृद्धि होती ही है।
इसके अलावा समाजवादी सोशलिस्ट सोच के कारणों से भारत के राजनैतिक दलों ने और साहित्यकारों, महात्माओं व फिल्मों ने भी गरीबी का महिमा मंडन ही किया है। लोगों को ये ही बताया गया कि पैसे वाले और उद्योगपति चोर और बेईमान होते हैं, वे गरीबों का खून चूस कर अमीर बने हैं, गरीब ईमानदार होते हैं इत्यादि ही बताया गया है।
किसी ने भी गरीबों का आव्हान नहीं किया कि गरीबी के चक्र को तोड़ो। इसलिये लोगों को कोई भी इच्छा नहीं होती है कि गरीबी से बाहर निकलें।
निष्कर्ष
ऊपर बताये गये कारणों के अलावा भी कई कारण हैं जिसकी वजह से न तो गरीबी कम होती है बल्कि बढ़ती भी जाती हैं। भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार, राजनीतिक दलों द्वारा गरीबों को वोट बैंक बनाये रखना, भारत की अर्थव्यवस्था की तेजी से न बढ़ना, जलवायु की वजह से लोगों की कार्यकुशलता में कमी होना, देश का चारों ओर से दुश्मनों से घिरा होना और इस कारण सुरक्षा पर बहुत ज्यादा खर्च करना इत्यादि कई अन्य कारण हैं जिनसे भी भारत में गरीबी दूर नहीं हो रही है।
भारत की गरीबी केवल एक व्यक्ति, परिवार, समाज की की समस्या नहीं है, बल्कि यह एक राष्ट्रीय समस्या बन चुकी है। गरीबी एक ऐसी मानवीय परिस्थिति है जो हमारे जीवन में निराशा, दुख और दर्द लाती है।
लोगों, अर्थव्यवस्था, समाज और देश के सतत और समावेशी विकास के लिए गरीबी का उन्मूलन आवश्यक है। यदि भारत के लोग ठान लें को कुछ किया जा सकता है।